उस्ताद की मिश्री की डिबिया
मैं अक्सर देखा करता था कि उस्ताद (चौबे सर) के पास एक छोटी सी डिबिया थी जिससे वह कुछ निकालकर बीच बीच में खाया करते थे. एक दिन पूछने पर उन्होंने बताया कि, "इसमें मिश्री के दाने हैं. मिश्री खाने से आवाज़ में मिठास भी आती है और गला नम बना रहता है जिससे गाते समय गले में ख़राश नहीं आती." पिछले महीने जब मैंने गायन को और गंभीरता से लेना शुरू किया और ख़राश की समस्या आनी शुरू हुई, तो मैंने भी उस्ताद की डिबिया जैसी ही एक मिश्री की डिबिया अपने लिए तैयार की. वैसे तो उस्ताद की याद हर रोज़ करता ही हूँ क्योंकि उन्होंने अंग्रेज़ी, उर्दू, शायरी, संगीत, क़ुरआन, बाइबल जैसी अद्भुत चीज़ें सिखाईं और समझाईं. फिर भी इन सबमें वह मिठास नहीं है, जो उस्ताद की मिश्री की डिबिया को याद करके मिलती है.